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तस्य नो चलते मनः

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तस्य नो चलते मनः वनवास की अवधि में एकबार सीता और लक्ष्मण एकान्त में बैठे हुए थे। दोनों ही युवावस्था में थे। सीता का सौंदर्य अद्भुत था। आसपास का वातावरण सौंदर्य से भरपूर था।  इतने में श्रीराम वहाँ आते हैं। सीता और लक्ष्मण को एकान्त में बैठे हुए देखकर लक्ष्मण से पूछते हैं,  पुष्पं दृष्ट्वा फलं दृष्ट्वा दृष्ट्वा स्त्रीणां च यौवनम्।  त्रीणि रत्नानि दृष्ट्वैव कस्य नो चलते मनः।।     - पुष्प, फल और  स्त्री के यौवन- इन तीन रत्नों को देखकर ही किसका मन चलित नहीं होता है?  तब लक्ष्मण ने उत्तर दिया:- पिता यस्य शुचिर्भूतो माता यस्य पतिव्रता।  उभाभ्यामेव संभूतो तस्य नो चलते मनः।।      - जिसका पिता पवित्र जीवनवाला हो, और जिसकी माता पतिव्रता हो, उनसे उत्पन्न पुत्र का मन चलित नहीं होता है।       राम ने पुनः पूछा:- अग्निकुण्डसमा नारी घृतकुम्भसमः पुमान्।  पार्श्वे स्थिता सुन्दरी चेत् कस्य नो चलते मनः।      - सुन्दर स्त्री अग्निकुण्ड के समान होती है  और पुरुष घी के कुम्भ के समान होता है। । ऐसी स्थिति में यदि सुंदरी समीप में  हो, तो किस का मन चलित नहीं होता है?  लक्ष्मण:- मनो धावति स