तस्य नो चलते मनः
तस्य नो चलते मनः
वनवास की अवधि में एकबार सीता और लक्ष्मण एकान्त में बैठे हुए थे। दोनों ही युवावस्था में थे। सीता का सौंदर्य अद्भुत था। आसपास का वातावरण सौंदर्य से भरपूर था। इतने में श्रीराम वहाँ आते हैं। सीता और लक्ष्मण को एकान्त में बैठे हुए देखकर लक्ष्मण से पूछते हैं,
पुष्पं दृष्ट्वा फलं दृष्ट्वा दृष्ट्वा स्त्रीणां च यौवनम्।
त्रीणि रत्नानि दृष्ट्वैव कस्य नो चलते मनः।।
- पुष्प, फल और स्त्री के यौवन- इन तीन रत्नों को देखकर ही किसका मन चलित नहीं होता है?
तब लक्ष्मण ने उत्तर दिया:-
पिता यस्य शुचिर्भूतो माता यस्य पतिव्रता।
उभाभ्यामेव संभूतो तस्य नो चलते मनः।।
- जिसका पिता पवित्र जीवनवाला हो, और जिसकी माता पतिव्रता हो, उनसे उत्पन्न पुत्र का मन चलित नहीं होता है।
राम ने पुनः पूछा:-
अग्निकुण्डसमा नारी घृतकुम्भसमः पुमान्।
पार्श्वे स्थिता सुन्दरी चेत् कस्य नो चलते मनः।
- सुन्दर स्त्री अग्निकुण्ड के समान होती है और पुरुष घी के कुम्भ के समान होता है। । ऐसी स्थिति में यदि सुंदरी समीप में हो, तो किस का मन चलित नहीं होता है?
लक्ष्मण:-
मनो धावति सर्वत्र मदोन्मत्तगजेन्द्रवत्।
ज्ञानाङ्कुशसमा बुद्धिस्तस्य नो चलते मनः।।
- उन्मत्त हाथी की तरह मन सर्वत्र दौड़ता है किन्तु ज्ञानरूपी अंकुश के समान जिस की बुद्धि हैं - उसका मन चलित नहीं होता हैं।
धन्य है भारतभूमि! जहाँ लक्ष्मण जैसे चरित्रवान् रत्न उत्पन्न हुए हैं, जिनके उच्चतर चरित्र से यह धरा सदा पुनीत होती रही है।
सत्य है शिव है सुन्दर है 🌷💐🕉⛳🙏
साभार : बाल्मीकि रामायण
वनवास की अवधि में एकबार सीता और लक्ष्मण एकान्त में बैठे हुए थे। दोनों ही युवावस्था में थे। सीता का सौंदर्य अद्भुत था। आसपास का वातावरण सौंदर्य से भरपूर था। इतने में श्रीराम वहाँ आते हैं। सीता और लक्ष्मण को एकान्त में बैठे हुए देखकर लक्ष्मण से पूछते हैं,
पुष्पं दृष्ट्वा फलं दृष्ट्वा दृष्ट्वा स्त्रीणां च यौवनम्।
त्रीणि रत्नानि दृष्ट्वैव कस्य नो चलते मनः।।
- पुष्प, फल और स्त्री के यौवन- इन तीन रत्नों को देखकर ही किसका मन चलित नहीं होता है?
तब लक्ष्मण ने उत्तर दिया:-
पिता यस्य शुचिर्भूतो माता यस्य पतिव्रता।
उभाभ्यामेव संभूतो तस्य नो चलते मनः।।
- जिसका पिता पवित्र जीवनवाला हो, और जिसकी माता पतिव्रता हो, उनसे उत्पन्न पुत्र का मन चलित नहीं होता है।
राम ने पुनः पूछा:-
अग्निकुण्डसमा नारी घृतकुम्भसमः पुमान्।
पार्श्वे स्थिता सुन्दरी चेत् कस्य नो चलते मनः।
- सुन्दर स्त्री अग्निकुण्ड के समान होती है और पुरुष घी के कुम्भ के समान होता है। । ऐसी स्थिति में यदि सुंदरी समीप में हो, तो किस का मन चलित नहीं होता है?
लक्ष्मण:-
मनो धावति सर्वत्र मदोन्मत्तगजेन्द्रवत्।
ज्ञानाङ्कुशसमा बुद्धिस्तस्य नो चलते मनः।।
- उन्मत्त हाथी की तरह मन सर्वत्र दौड़ता है किन्तु ज्ञानरूपी अंकुश के समान जिस की बुद्धि हैं - उसका मन चलित नहीं होता हैं।
धन्य है भारतभूमि! जहाँ लक्ष्मण जैसे चरित्रवान् रत्न उत्पन्न हुए हैं, जिनके उच्चतर चरित्र से यह धरा सदा पुनीत होती रही है।
सत्य है शिव है सुन्दर है 🌷💐🕉⛳🙏
साभार : बाल्मीकि रामायण
वाल्मीकि रामायण से तो नहीं है । क्यों मूर्ख बनाते हो, यदि स्वयं ही ग्रन्थ नहीं पढ़ा है तो ?
ReplyDeleteतुमने पढा है क्या मुर्ख
Deleteऔर लिखा कोई भी ग्रंथ मे हो उसके पिछे का आशय समझो
कहा लिखा है उसके पिछे बुद्धी गवाना मुर्खता का और एक लक्षण है
Jai SiyaRam 🌺💐🙏
Deleteऋषिकेश तेली महोदय की बात को समझनी चाहिए !! उन की बात सत्य ही है !
Deleteइसीलिए ऐसे तर्क कुतर्क करने वालें सभी भारतीयों को भगवान सद्बुद्धि दें !
रामायण में लक्ष्मण चरित्र में लिखा है
Deleteइस तरह की सिख यह आज के युवकोंको प्रेरणा देता रहेगा
ReplyDelete🌷💐🕉⛳🙏
ReplyDeleteजय श्री राम
ReplyDelete